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धौ  : अव्य० [सं० अथवा] अवधी, ब्रज आदि बोलियों का एक अव्यय, जिसका प्रयोग नीचे लिखे अर्थों और रूपों में होता है—१. विकल्पात्मक कथन में, अनिश्चय या संशय के साथ किंचित् कुतूहल का भाव सूचित करने के लिए ठीक कहा नहीं जा सकता कि ऐसा है या वैसा, अथवा यह है या वह। उदा०—गुनत सुदामा जात मनहिं मन चीन्हैंगे धौं नाहीं।—सूर। २. न जाने। पता नहीं। मालूम नहीं। उदा०—(क) अब धौं कहा करिहि करतारा।—तुलसी। ३. ‘तो’ ‘भला’ आदि की तरह किसी बात या शब्द पर केवल जोर देने के लिए। उदा०—जड़ पंच मिलै जेहि देह करी, करनी लखु धौं धरनी धर की।—तुलसी। (ख) तुम कौन धौं पाठ पढ़े हौ लला।—घनानंद। ४. तुम्हीं कहो या बताओ तो सही। उदा०—(क) अब धौं कहाँ कौन दर जाऊँ।—सुर (ख) कृपा सो धौं कहाँ बिसारी राम।—तुलसी। ५. संयोजक अव्यय ‘कि’ की तरह या उसके स्थान पर। उदा०—हमहुँ न जानै धौं सो कहाँ।—जायसी। ६. खाली ‘तो’ की तरह या उसके स्थान पर। जैसे—कि धौ या की धौं। ७. निश्चित या स्पष्ट रूप से। अच्छी तरह। उदा०—तिमि अवध तुलसीदास प्रभु बिनु समुझि धौं जियाँ भामिनी।—तुलसी।
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धौंक  : स्त्री० [हिं० धौंकना] धौंकना की क्रिया या भाव। स्त्री० [हिं० धधकना] आग की लपट। लौ।a
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धौंकना  : सं० [सं० धमन या धम्?] १. आग दहकाने के लिए पंखे, भाथी आदि की सहायता से, उस पर निरन्तर जोर की हवा पहुँचाते रहना। (ब्लोइंग) २. उग्रता या कठोरतापूर्वक किसी पर कोई भार रखना या लादना। जैसे—तुमने भी तो छोटे-से लड़के पर मन भर का भार धौंक दिया। ३. दंड के संबंध में उग्रता या कठोरतापूर्वक आदेश देना। जैसे—किसी पर जुरमाना धौंकना।
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धौंकनी  : स्त्री० [हिं० धौंकना, सं० धमनिका] १. प्रायः चमड़े की थैली का बना हुआ एक उपकरण, जिसे बार-बार खोलकर बन्द करने और दबाने से उसके अंदर भरी हुई हवा नीचे लगी हुई नली के रास्ते आग तक पहुँचकर उसे दहकाने या उसे सुलगाने में सहायक होती है। भाथी। विशेष—प्रायः लोहार, सुनार आदि अपनी भट्ठी सुलगाने के लिए इसका प्रयोग करते हैं। २. धातु, बाँस आदि की वह पतली नली जिससे मुँह से हवा फूँककर आग आदि सुलगाई जाति है। फुकनी।
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धौंका  : पुं० [हिं० धौंकना] गरमी में चलनेवाली तेज गरम हवा का झोंका।
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धौकिया  : पुं० [हिं० धौंकना] १. धौंकनी चलाने अर्थात् धौंकनेवाला आदमी। २. वह कारीगर जो बरतनों की मरम्मत या उन पर कलई करने के लिए धौकनी साथ लेकर जगह-जगह घूमता हो।
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धौंकी  : पुं०=धौंकिया। स्त्री०=धौंकनी।
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धौंज  : स्त्री० [हिं० धावना=धाना या दौड़ना] १. दौड़-धूप। २. दौड़-धूप करने के लिए होनेवाली घबराहट या परेशानी।
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धौजन  : स्त्री०=धौंज।
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धौंजना  : अ० [हिं० धौज] १. दौड़—धूप करना। २. परेशान या हैरान होना। सं० १. पैरों से कुचलना। रौंदना। २. परेशान या हैरान करना।
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धौंटा  : पुं० [?] नटखट पशुओं की आँखों पर बाँधा जानेवाला आवरण या पट्टी। अंधियारी। पुं०=धोटा (पुत्र या बालक)।a
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धौंताल  : वि० [हिं० धुन?] १. जो काम करने में अपनी धुन का पक्का हो। २. चतुर चालाक। ३. चंचल। चपल। ४. निपुण। पटु। ५. साहसी। ६. उजड्ड। गँवार। ७. उपद्रवी। शरारती। (संभवतः व्यंग्यात्मक)
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धौं-धौ-मार  : स्त्री० [अनु० धम-धम+हिं० मार] उतावली। जल्दी। शीघ्रता। क्रि० प्र०—मचाना
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धौंर  : स्त्री० [सं० धवल] एक प्रकार की सफेद ईख।a
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धौंस  : स्त्री० [सं० दंश या हिं० धौंकना] १. किसी को असमंजस में पड़ा हुआ या दुर्बल समझकर उसके साथ किया जानेवाला ऐसा आचरण या व्यवहार अथवा उससे कही जानेवाली ऐसी बात जिससे वह डरकर धोखे में पड़ जाय और प्रतिकूल या विरुद्ध आचरण न कर सके। (प्रायः बराबरवालों के लिए प्रयुक्त) जैसे—तुम भी उनकी धौंस में आकर सौ रुपए गँवा बैठे। विशेष—यह शब्द धमकी का बहुत-कुछ समानक होने पर भी भाव-व्यंजन की दृष्टि से कुछ हलका तथा धोखेबाजी के भाव से युक्त है। २. इस प्रकार दिखाया जानेवाला भय तथा जमाया जानेवाला आतंक। जैसे—अच्छा, अब आप बहुत धौंस मत दिखाइए। क्रि० प्र०—दिखाना।—देना।—में आना। ३. स्वार्थ-साधन के लिए किसी को दिया जानेवाला चकमा झाँसा-पट्टी। भुलावा। ४. अधिकार, प्रभुत्व आदि का आतंक। धाक। क्रि० प्र०—जमना।—जमाना।—बँधना।—बाँधना। मुहा०—धौंस की चलना=अपना आतंक जमाते या भय दिखाते हुए धूर्ततापूर्ण आचरण या व्यवहार करना अथवा गहरी चाल चलना। ५. ब्रिटिश भारत में वह रुपया जो लगान या मालगुजारी ठीक समय पर न देने के कारण दंड-स्वरूप असामी या जमींदार से वसूली के खर्च के रूप में लिया जाता था। मुहा०—धौंस बाँधना=दंड आदि के रूप में किसी के जिम्मे कोई खर्च लगाना या उससे वसूल करना। स्त्री०=धुवाँस।a
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धौंसना  : सं० [सं०, दंशन, हिं० धौंस] १. दंड आदि के रूप में कोई काम, खरच या भार किसी के जिम्मे लगाना। धौंकना। २. अपना काम निकालने के लिए किसी तरह की जबरदस्ती या बल-प्रयोग करना। ३. डराना-धमकाना। ४. डाँटना-डपटना। ५. मारना-पीटना।
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धौंस-पट्टी  : स्त्री० [हिं० धौस+पट्टी] १. ऐसी बात-चीत जिसमें कुछ धमकी भी हो और कुछ भुलावा भी दिया जाय। २. झाँसा-पट्टी। क्रि० प्र०—देना। मुहा०—(किसी की) धौंस-पट्टी में आना= किसी की धमकी से डरकर या बहकावे में आकर कोई काम कर बैठना।
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धौंसा  : पुं० [हिं० धौंसना] १. बड़ा नगारा। डंका। मुहा०—धौंसा देना=सेना का आक्रमण या कूच करने के लिए डंका या नगाड़ा बजाना। २. शक्ति। सामर्थ्य। जैसे—किसी का क्या धौंसा है जो इस काम में हाथ डाले।
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धौंसिया  : पुं० [हिं० धौंस] १. दूसरों पर केवल धौंस जमाकर अपना काम निकालनेवाला। २. चालाक। धूर्त। ३. मध्ययुग में, वह व्यक्ति जो कुछ पारिश्रमिक लेकर जमींदारों की बाकी मालगुजारी असामियों से वसूल करने का काम करता था। पुं० [हिं० धौंसा] वह जो धौंसा बजाने का काम करता था।
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धौ  : पुं० [सं० धव] एक ऊँचा झाड़ या सदाबहार पेड़, जिसकी पत्तियाँ और छाल चमडा सिझाने के काम में आती हैं और फूलों से लाल रंग बनाया जाता है। धव। पुं० [सं० धव] समस्त पदों के अंत में, पति। उदा०—गिराधौ, रमाधौ, उमाधौ अनंता।—केशव।
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धौकना  : सं०=धौंकना।
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धौकनी  : स्त्री०=धौंकनी।
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धौकरा  : पुं०=धौरा (बाकली की तरह का वृक्ष)।a
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धौ-काँदव  : पुं० [सं० धान्य-कर्दम] एक प्रकार का धान और उसका चावल।
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धौत  : वि० [सं०√धाव् (शुद्धि)+क्त] १. जो धोया या धोकर साफ किया जा चुका हो। २. उजला। सफेद। ३. जो नहा-धो चुका हो। स्नात। पुं० चाँदी। रूपा।
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धौतय  : पुं० [सं० धौत√या (गति)+क] सेंधा नमक।
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धौत-शिला  : स्त्री० [कर्म० स०] बिल्लौर। स्फटिक।
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धौतात्मा (त्मन्)  : वि० [धौत-आत्मन्, ब० स०] जिसकी आत्मा पापों के धुल जाने के कारण पवित्र और शुद्ध हो गई हो। पवित्रात्मा।
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धौताल  : वि०=धौताल।
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धौति  : स्त्री० [सं०√धाव्+क्तिन्] १. धोकर साफ करने की क्रिया। धुलाई। २. योग की एक क्रिया जिसमें दो अंगुल चौड़ी और आठ-दस हाथ लंबी कपड़े की धज्जी मुँह से पेट के नीचे उतारते हैं, और फिर पानी पीकर उसे धीरे-धीरे बाहर निकालते हैं। इस क्रिया से पेट और आतें धुलकर साफ हो जाती है। ३. उक्त क्रिया के लिए काम में लाई जानेवीली कपड़े की धज्जी या पट्टी।
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धौम्य  : पुं० [सं० धूम+यभ्] १. एक ऋषि, जो देवल के भाई और पांडवों के पुरोहित थे। और जो अब पश्चिमी आकाश में स्थित एक तारे के रूप में माने जाते हैं। २. एक ऋषि जो महाभारत के अनुसार व्यघ्रपद नामक ऋषि के पुत्र और बहुत बड़े शिव-भक्त थे। और शिव के प्रसाद से अजर, अमर और दिव्य ज्ञान संपन्न हो गये थे। ३. एक ऋषि का नाम जिन्हें आयोद भी कहते थे। इनके आरुणि, उपमन्यु और वेद नामक तीन शिष्य थे। ४. एक ऋषि, जो पश्चिम दिशा में तारे के रूप में स्थित माने जाते हैं।
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धौम्र  : वि० [सं० धूम्र+अण्] धूएँ के रंग का। पुं० उक्त प्रकार का रंग।
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धौर  : पुं० [हिं० धौरा=सफेद] सफेद परेवा।
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धौरहर  : पुं० [सं० धवलगृह] १. मकान का वह ऊपरी भाग, जो खंभे की तरह बहुत ऊँचा गया हो और जिस पर चढ़ने के लिए अन्दर-अन्दर सीढ़ियाँ बनी हों। धरहरा। २. उक्त में बना हुआ कमरा। ३. दे० ‘धरहरा’।
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धौरा  : वि० [सं० धवल] [स्त्री० धौरी] १. श्वेत। सफेद। २. उजला। साफ। पुं० १. सफेद रंग का बाल। २. धौ का पेड़। ३. पंडुक की तरह की एक चिड़िया, जो उससे कुछ बड़ी और खुलते रंग की होती है। पुं० [सं० धव] बाकली की तरह का एक प्रकार का वृक्ष जो मध्यभारत में अधिकता से होता है।a
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धौरादित्य  : पुं० [सं०] शिवपुराण के अनुसार एक तीर्थ।
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धौराहर  : पुं०=धौरहर।
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धौरितक  : पुं० [सं० धोरित+अण्+कन्] घोड़े की पाँच प्रकार की चालों में से एक।
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धौरिय  : पुं० [सं० धौरेय] बैल।
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धौरी  : स्त्री० [हिं० धौरा] १. सफेद रंग की गाय। कपिला। २. एक प्रकार की चिड़िया। स्त्री०=बाकली।
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धौरे  : अव्य०=धोरे (निकट या पास)। उदा०—धरि रहै। हाथ माथ के धौरे।—नन्ददास।
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धौरेय  : वि० [सं० धुरा+ढक्—एय] धुर (रथ आदि) खींचनेवाला। पुं० रथ में जोता जानेवाला। बैल।
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धौर्तक  : पुं० [सं० धुर्त+बुञ्—अक]=धूर्तता।
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धौर्त्य  : पुं० [सं० धुर्त+ष्यञ्] धूर्तता।
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धौर्य  : पुं० [सं० धुर+ण्यत्] घोड़े की एक प्रकार की चाल।
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धौल  : स्त्री० [अनु०] १. हाथ के पंजे या हथेली से सिर पर किया जानेवाला आघात। क्रि० प्र०—जड़ना।—जमाना।—देना।—पड़ना।—मारना।—लगाना। पद—धौल-धप्पा या धौल-धप्पड़=परस्पर धौल और धप्पड़ मारना। २. आर्थिक आघात या धक्का। जैसे—दस रुपये की धौल तुम्हें भी लगी। क्रि० प्र०—पड़ना।—लगना। स्त्री० [सं० धवल] कानपुर, बरेली आदि में होनेवाली एक प्रकार की ईख। पुं० [सं० धवल] धौ का पेड़। धव। वि० १. उजला। सफेद। २. बहुत बड़ा। जैसे—धौल धूर्त=बहुत बड़ा धूर्त। पुं०=धवलगृह (धौरहर)।a
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धौलाई  : स्त्री०=धवलता।
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